My new composition...
आवरण हटाकर तो देखो
जीवन कैसा करिश्मा है,
सच-झूठ की माया है ।
ये तारीफें ये वादे,
जाने छुपाते कैसे इरादे ?
बात करते हैं सुंदरता की,
क्योंकि सभी ने यही है सीखा।
खूबसूरती और श्रंगार के पीछे की
बुराई को है कभी झाँक कर देखा?
करते हैं बात तौर-तरीके की,
पहनने, रहने और बतियाने की |
मुँह से तो बहुत होगा सुना राम-नाम,
कभी पीछे झाँक कर देखी है छुरी?
बहुत देखे होंगे तुमने,
मुस्काते चेहरे आस-पास ।
क्या तुम्हे हुआ है आभास?
साथ बैठ हसेंगे सभी,
पर आँसु पोंछने न आएँगे कभी |
सच्ची दोस्ती कैसे तुम जानो?
नेक इरादे कैसे पहचानो?
संसार जैसे मृगतृष्णा है,
पानी है नहीं पर दिखता है ।
संसार जैसे तरणताल है,
है गहरा पर लगता उथला है ।
बाहरी दिखावे का राज है ।
बड़ी-बड़ी बातें तो खास हैं।
सत्य के प्रति सभी हैं मौन,
आखिर दिल का इरादा जानता है कौन?
दया और ईमान यहाँ छोटे हैं।
छल कपट का है गान।
चेहरे नहीं ये मुखौटे हैं,
सच-झूठ की कैसे हो पहचान?
पंडित नहीं हर जन जो पढ़े गीता,
रावण नहीं हर जन जो हरे सीता।
है हर संत का बीता हुआ पल,
है हर पापी का आने वाला कल।
जीवन एक दोहा है प्रियों,
शब्द नहीं इसका अर्थ सीखो।
कभी आवरण हटाकर,
अन्तर्मन को तो देखो।
No comments:
Post a Comment